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इन दिनों अगर कोई भी घटना होती है जो किसी भी मापदंड से अच्छी प्रवृत्ति का परिचायक नहीं है तो यह एक आधार है विरोधी राजनीतिक दलों के लिए कि असामाजिक बयानबाज़ी शुरू की जाए जो समाज में असहिष्णुता को बढ़ावा दे.
तत्पश्चात सारा दोष भारतीय जनता दल के दरवाज़े पर छोड़ दिया जाता है और पूरे ज़ोर से बदनामी का बौछार किया जाता है.
इसमें सचाई कम है और विरोधी दलों के सत्ता से बाहर होने का ग़ुस्सा अधिक है. यहाँ इस बात को ध्यान में रखा जाए की केंद्र की सरकार भारतीय जनता दल को ख़ुद बहुमत मिलने के बाद बनी है.
कांग्रिस पार्टी तथा उनके सहयोगी – राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यू) आदि सामान्य तौर से देश की सारी ख़राबियों तथा आर्थिक विफलताओं के लिए BJP को ज़िम्मेदार बताते हैं. हैरानी की बात है की कांग्रिस पार्टी BJP को सीख देना चाहती है
कि देश को समृद्धिशाली किस प्रकार बनाया जाए तथा कमज़ोर और पिछड़े लोगों के आर्थिक सफलता के लिए क्या किया जाए. यहाँ पर यह आवश्यक है कि कांग्रिस की उपलब्धियों पर सोचा जाए कि। उन्होंने कितनी सफलता प्राप्त की देश को समृद्ध बनाने में और कमज़ोर तथा पिछड़े वर्गों को ऊपर उठाने में.
पहले इसपर ध्यान दें कांग्रिस पार्टी ने क्या किया ताकि आर्थिक रूप से निर्बल जन समुदाय अपने पैरों पर खड़े होने लायक हो जाए. कोई भी अर्थशास्त्री या समायोजक – प्रबंधक आपको यह बताएगा कि लोगों को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए यह ज़रूरी है कि लोगों के रोज़गार पैदा करने वाले अवसरों को उपलब्ध कराया जाए. इस प्रकार जनता के लिए रोज़गार होगा और अपने पैरों पर खड़ा होने की क्षमता होगी. इसका अर्थ यह साफ है कि ग़रीबों को पैसा बाँटने से या थोड़ा बहुत सरकार की ओर से मदद दिए जाने से काम होने से रहा. इस लक्ष्य के लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्रीय कंपनियाँ निवेश करें, उद्योग लगाएँ जिससे रोज़गार का अवसर उपलब्ध हो सके. साथ साथ उर्वरक अवसर हो जिसमें विदेशी निवेश को बल देने की क्षमता हो.
भाजपा ऐसा कर रही है जिससे राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय निवेश संभव हो जो नए उद्योग की स्थापना में सक्रिय भाग ले सकेगा. इस प्रकार से लोगों को रोज़गार मिलेगा और लोग अपना देखभाल ख़ुद करने में समर्थ हो सकेंगे.
दुर्भाग्य वश कांग्रिस तथा उनके सहयोगी दलों को यह बात भाती नहीं है और देश के लिए काम करने के बजाए विरोधी दलों का काम केवल भाजपा के कामों में खोंट देखना है और अच्छे कामों की सराहना ये विरोधी पार्टियाँ करने में असफल हैं. हमारे लिए यह दुर्भाग्य है कि राजनेता देश या समाज के लिए काम नहीं करते. राजनेता-गण केवल एक दूसरे की आलोचना करते हैं और देश के प्रति काम करना विरोधी दलों का धर्म नहीं है.
यह किया जाता है इस बात के आधार पर कि प्रजातंत्र में सभी को संवैधानिक अधिकार अपने विचार प्रकट करने का है इसकी आवश्यकता नहीं है कि विचार रचनात्मक हो तथा देश और समाज के लिए इसका क्रियात्मक महत्व हो. सत्ता में न होना विरोधी दलों को स्वीकार्य नहीं है. प्रजातंत्र में सभी को अपने विचार अन्य लोगों के सामने उन्मुक्त और स्पष्ट रूप से व्यक्त कर आपस में विचार विमर्श करने की सुविधा है और क़ानूनी इस पर कोई भी पाबंदी नहीं लगा सकता. यह प्रक्रिया समाज तथा देश के हित के लिए है. भाषण देने के लिए और समाज के हितों का व्यावहारिक ढंग से काम न होने देने के लिए बयानबाज़ी प्रजातांत्रिक मूल्यों का हनन है, दुरुपयोग है. सत्ताधारी दल और विरोधी दलों में समन्वय आवश्यक है समाज को देश को आगे ले जाने के लिए. जिस प्रकार से पिछले कई सालों से टक्कर की
राजनीति चल रही है उसके आधार पर कह सकते हैं कि संविधान में सुधार की आवश्यकता है. भूखे, नंगों और अशिक्षित के लिए वर्तमान संवैधानिक ढाँचा सही नहीं है. समाज में अशिष्टता पारस्परिक अनादर का भाव है. हमारे भारतीय मूल्यों के विपरीत हम होते जा रहे हैं. इससे हमारे अस्तित्व को ख़तरा है. फूट और वैचारिक असामंजस्यता हमारे लिए आंतरिक तथा वैदेशिक ख़तरा का गंभीर विषय हो गया है.
इधर हाल की घटनाओं से लगता है समाज में धर्म, संप्रदाय के नाम पर मारपीट, हत्या, नर्विनाशक गतिविधियाँ बढ़ी हैं. ऐसी गतिविधियाँ धर्मनिरपेक्ष मूल्यों तथा धारणाओं के विरुद्ध हैं. प्रजातंत्र को इससे बचना होगा. यह संविधान के प्रतिकूल है कि सरकारी तौर पर विभिन्न संप्रदायों या धर्म के लोगों को बराबर अधिकार न हो. यदि देखें तो ही हिंदू धर्म पर चलने वाले यह जानते हैं कि हिंदू धर्म अपने आप में धर्मनिरपेक्ष है क्यों कि इस धर्म के आधार पर सारा ब्रह्मांड, सारी दुनिया एक परिवार है. सामाजिक असहिष्णुता गंदी मानसिकता है जिसका पालन पोषण राजनेताओं की ओर से होता है. वे ऐसी मानसिकता फैलाते हैं और इसका पोषण समाजविरोधी तत्वों तथा अपनी भलाई के लिए करते हैं. किसी विशेष राजनैतिक दल पर इसका दोष मढ़ना इस समस्या का समाधान निकालना नहीं है.
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