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यह बहुत दुःख की बात है कि विपक्षी दल पिछले सत्र के जैसा वर्तमान शीतकालीन सत्र में भी गतिरोध पर तुले हैं. इस कारण ज़रूरी विधेयक पारित नहीं हो पाया है. यदि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का रुझान देश की उन्नति की दिशा में होता तो ऐसी स्तिथि पैदा ही नहीं होती. GST विधेयक का पारित होना अति आवश्यक है, इस विधेयक को क़ानून के रूप में होना देश हित में है. पर कोंग्रेस को परेशानी इस बात की है कि इस विधेयक के राज्य सभा में पारित होने से राष्ट्रपति की सहमति मिलते ही GST क़ानून लागू हो जायेगा और देश में व्यापारिक काम काज में आसानी होगी जिससे व्यापारियों को व्यापार की सुविधा बढ़ेगी. इसका सीधा परिणाम होगा देश की GDP की वृद्धि जो कांग्रेस को क़तई पसंद नहीं क्योंकि इसका श्रेय भाजपा को मिलेगा जो कांग्रेस को पसंद नहीं है. ज़ाहिर है कि कांग्रेस ना ख़ुद कुछ कर पायी और ना भाजपा को देश की तरक़्क़ी आगे बढ़ाने में सहयोग देती है. यह ऐसा विकल्प हमारे सामने पैदा अनावश्यक ही हो गया है कि हमें कांग्रेस पार्टी की कृपा पे रहना है.
मैं ऐसा सोचने को वाद्य हो जाता हूँ की राज्य सभा की क्या आवश्यकता है. ऐसा क्यों नहीं है कि जब विधेयक लोकसभा से पारित होता है तो सीधा राष्ट्रपति की सहमति तथा हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया जा सके और क़ानून बन जाए. मैं इस तथ्य से अवगत हूँ कि संविधान इसकी इजाज़त नहीं देता. भविष्य की सुविधा के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता है.
दूसरा तरीक़ा यह हो सकता है कि जब विधेयक लोक सभा से पारित हो जाये तब इसे राज्य सभा सूचना के लिया तथा सलाह के लिए भेजा जाये पर यह अनिवार्य नहीं होना चाहिए कि राज्य सभा is में विधेयक पारित ही हो. UK में ऐसा ही किया गया है. वहाँ जब विधेयक हाउस ऑफ़ कॉमन्स से पारित होकर हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में प्रस्तुत किया जाता है तो पहले के अनुसार दोनों सदनों
से पारित होना ज़रूरी था ताकि इसे रानी की सहमति और हस्ताक्षर के बाद कानून की शक्ति दी जा सके. UK में भी उसी तरह की हालत हो जाती थी कि हाउसऑफ़ कॉमन्स से पारित होने के बाद विधेयक हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में पारित होने से रह जाता था जिससे कानून बनने के रास्ते में रोड़ा खड़ा होता था. इस प्रकार की परिस्तिथि से बचने के लिए निर्णय लिया
गया कि हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स द्वारा विधेयक का पारित किया जाना ज़रूरी नहीं है. अगर पारित होता है तो ठीक है नहीं तो हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स से विधेयक लौटने पर हाउस ऑफ़ कॉमन उनके दिए गए सुझावों पर विचार करे और अपने फ़ैसले के हिसाब से विधेयक में संशोधन
कर रानी के हस्ताक्षर के लिए भेज कर उनसे हस्ताक्षर प्राप्त होने पर विधेयक को क़ानून की शक्ति मिल जाती है.
भारत में यह ज़रूरी है कि इस क़दम पर सोच विचार किया जाय ताकि जिस तरह से कांग्रेस देश की प्रगति में बाधा डाल रही है उससे मुक्ति मिले. कांग्रेस तथा दूसरी विरोधी पार्टियों द्वारा संसद में हंगामा किए जाने के कारण उस विधेयक को क़ानून की शक्ति नहीं दी जा सकी जिसके आधार पर नाबालिग़ बलात्कारी को बालिग़ की तरह सज़ा दी जा सके.
हमारे देश की बुरी हालत के लिए मुख्य रूप से कांग्रेस ज़िम्मेदार है. आज़ादी के बाद अधिकतर कांग्रेस का शासन रहा है और इनकी और से एकजुट होकर काम करने की लगन तथा सबको साथ लेकर चलने की भावना कभी नहीं रही. यह दुर्भाग्य की बात है.
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