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ब्रिटेन में जनमत संग्रह
अभी २३ जून को हुए जनमत संग्रह का परिणाम इस तरह का आया जिसके कारण विश्व में उथल पुथल मच गया है. आपको यह मालूम ही है कि 52% मत यूरोपीय संघ से निकल जाने के पक्ष में और 48% मत संघ में बने रहने के पक्ष में रहा. यूरोपीय संघ मूलतः दूसरे विश्व युध की समाप्ति के बाद क्रियान्वन होने लगा जब European Common Market का संगठन हुआ. इस संगठन में प्रराम्भ में ६ देश थे. ये हैं – जर्मनी, इटली, फ्रांस, बेल्जियम, लक्सम्बर्ग और हॉलैंड. धीरे धीरे इस संगठन की सदस्यता बढ़ने लगी और अब २८ देशों की सदस्यता है और इसका नामकरण यूरोपीय संघ हो गया. २८ देशों का यह समूह आपस में व्यापार की सरलता तथा सीमाशुल्क की खास छूट के लिए प्रसिद्ध हो गया. साथ ही इन देशों ने अपनी सीमा पर इन देशों से आना जाना बिना किसी रोक टोक के कर दिया. ब्रिटेन इस संघ का सदस्य होकर भी अपनी सीमा पर इस देशों के नागरिकों को पासपोर्ट के साथ ही आने जाने की प्रथा चालू रक्खी. ब्रिटेन ने अपनी राष्ट्रीय मुद्रा को भी यूरोपीय संघ की मुद्रा से अलग बनाए रखा. इन देशों के नागरिकों को किसी भी यूरोपीय संघ के सदस्य देश में रहने और रोज़गार करने की सविधा है. इस कारण ब्रिटेन में अन्य सदस्य देशों के नागरिकों की संख्या २० लाख के लगभग है जो हर क्षेत्र में ब्रिटिश नागरिकों के साथ टक्कर लेते हैं और इस कारण ब्रिटेन की आर्थिक तथा सामाजिक व्यवस्था पर बल पड़ता है. यह भी बात सामने रखने के लायक है कि सामाजिक क्षेत्र में ब्रिटेन जो सुविधा अपने नागरिकों को देता है वही सुविधा इन सदस्य देशों के नागरिकों को भी मिलता है अगर वे ब्रिटेन में रहते है.
स्पष्ट है कि दक्षिण यूरोप के नागरिकों की संख्या ब्रिटेन में बढ़ने लगी. यूरोपीय संघ के सदस्य होने से ब्रिटेन को ज्यादा से ज्यादा मध्य पूर्व, लीबिया, नाइजीरिया, सीरिया, सोमालिया. इराक़ से आये हुए शरणार्थियों को लेना पड़ता है. कौन कितने शरणार्थियों को लेगा इसका निर्णय यूरोपीय संघ के हेड क्वार्टर में यानि Brussels में होता है. शरणार्थियों को अपने देश में आने के लिए इस पर ध्यान देना आवश्यक है कि ये शरणार्थी प्रजातान्त्रिक मूल्यों को समझते हैं और इसका इमानदारी से पालन करने की क्षमता रखते हैं. फ्रांस, बेल्जियम से जो खबरें मिलती रहती हैं वे इस सत्य का परिचायक है कि कोई धार्मिक वर्ग विशेष प्रजातान्तान्त्रिक मूल्यों की रक्षा और पालन करने में असमर्थ हैं क्योंकि यह उनके मूल्यों के विपरीत है.
आर्थिक और वाणिज्य के क्षेत्र में ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से निकलना चिंता का विषय है पर यह जो हुआ स्वाभाविक है क्योंकि ब्रिटेन एक सदस्य होकर अलग से कई विषयों पर निर्णय नहीं ले सकता था. और ऐसा मत है कि ब्रिटेन संघ से बाहर होकर अपने हित को ध्यान में रखते हुए मत्वपूर्ण विषयों पर फैसला बेहतर ले सकता है.
भारत को ब्रिटेन से आयात और निर्यात सम्बन्धी प्रश्नों पर शीघ्र वार्तालाप करना चाहिए. ब्रिटेन अब आज़ाद है भारत को निर्यात करने में और भारत से अधिक से अधिक सामान खरीदने में. ब्रिटेन स्थित भारतीय उद्योगपतियों के लिए यह आवश्यक है कि भारत की ओर अधिक ध्यान दें और ब्रिटेन से निर्यात बढाने में मदद करें. इससे दोनों देशों का विकास होगा. साथ ही भारत में “लाल फीते” की प्रथा को दूर करें यह भारत तथा राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व है. हमें छोटी बातों में उलझने की आवश्यकता नहीं है. आगे की सोचें और देश के विकास में भागीदार बनें.
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह
भारत की सदस्यता परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में शामिल होने के लिए जो आवेदन दिए गए हैं उस को अभी मंजूरी नहीं मिली है. भारत सरकार की सक्रियता सराहनीय रही. कठिन राहों से गुज़रकर हमें जल्द ही सदस्यता मिलेगी इसकी कामना है. विरोधी दल भारत सरकार के कठिन परिश्रम की सराहना न कर इसकी बुराई में लगे हैं. यह सभी को मालूम है कि चीन भारत की सदस्यता के खिलाफ है. ऐसा पाकिस्तान के अनुरोघ पर किया जा रहा है. पर भारत को इस कठिनाई से मुकाबला करने की पूरी क्षमता है. इन परिस्तिथियों में सरकार के उधम को कोसना और सदस्यता की मंज़ूरी अभी नहीं मिलने पर खुश होना विरोधी दलों को शोभा नहीं देता. सदस्यता अभी नहीं मिलने पर यह कहना की भारत की बेईज्ज़ती कराई गयी है विरोधी दलों की ओछी प्रवृत्ति की निशानी है.
अंग्रजी समाचार पत्रों में विरोधी दलों के अनर्गल वक्तव्यों को बढ़ा चढ़ाकर प्रकशित किया जाता है. हमें हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओँ के समाचार पत्रों को बढ़ावा देना चाहिए. साथ ही साथ हिंदी समाचार पत्रों को चाहिए कि देश विरोधी तत्वों के अनर्गल वक्तव्य को छापने के बजाये देश निर्माण सम्बन्धी क्रियात्मक समाचारों को बल दें. मेरी यह अपेक्षा है कि हिंदी तथा अन्य राष्ट्रीय भाषाओँ में छपे प्रकाशन को पढ़ें जिससे प्रोत्साहन बढे और साथ ही इनकी उन्नति में भागिदार बनें.
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