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शीतकालीन सत्र में संसद का कोई काम नहीं हुआ. विपक्ष ने देश की समस्यायों पर विचार करने के बजाय सत्ता में रहे सरकार को बदनाम बिना किसी खास कारणों के करते करते सारा समय बर्बाद कर दिया. काम कुछ नहीं हुआ पर दैनिंक भत्ता सांसदों को मिलता रहा जिसे लेने से किसी सांसद ने इनकार नहीं किया. लोक सभा तथा राज्यसभा इन दोनों के खर्चों पर नज़र डालें तो क़रीब दो सौ करोड़ का नुक्सान भारत को हो गया. सभी ग़रीबों की बात करते रहे और काम किये बिना पैसे सरकार से लेते रहे इस पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया ग़रीब पैसे कमाता है काम करने के बाद. अफ़सोस है भारत के राजनेता पैसे लेते हैं बिना काम किये. अफ़सोस की बात है पत्रकारों ने इस सच्चाई का पर्दाफाश करना ज़रूरी नहीं समझा.
यह बात अंग्रेजी और हिंदी दोनों प्रकाशनों के सन्दर्भ में कहा जा रहा है. किसी पत्रकार ने गंभीरता के साथ इस विषय पर ध्यान नहीं दिया और इस गंभीर विषय को अभियान का रूप देकर राजनेताओं की इन हरकतों से सारे देश को नाराज़ होने की बात नहीं कही?
मुझे अंग्रेजी प्रकाशनों से अधिक आशा नहीं है. उनका दिमाग़ लगा रहता है इस बात की ओर कांग्रेस पार्टी से निर्देश क्या मिल रहा है. अगर देश की जनता जो अंग्रेजी अखबार नहीं पढ़ती है उनलोगों से सांसदों की अप्रजातांत्रिक तथा निकम्मे हरकतों के बारे में पूछा जाए तो उनका सर्वसम्मति से यही कहना होगा इन सांसदों को वेतन तथा भत्ता पूरे शीतकालीन सत्र के लिए नहीं दिया जाए.
अपनी शाशन व्यवस्था को प्रजातंत्रात्मक प्रणाली का चोला पहनाकर और संस्कृति के बड़प्पन के दावे को दोहराते रहना हमें खुशहाल नहीं बनाता. इस राजनीतिक हंगामें के लिए ज़िम्मेदारी सत्ता धारी पार्टी बीजेपी को भी कुछ लेना होगा. जनता हमारी ग़रीब है उनसे आवाज़ उठाने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि जनहित में कार्यरत संस्थाएं इस मुद्दे को लेकर आवाज़ उठायें तथा मतदाताओं के बीच जागरूकता फैलाएं कि मत देने के समय जाति और धर्म पर ध्यान नहीं देकर ऐसे राजनेता का चयन करें जो देश और समाज की उन्नति के लिए काम करें.
राजनीतिक हंगामे का मुख्य कारण रहा विमुद्रीकरण. विमुद्रीकरण से कठिनाइयाँ आम जनता को अवश्य हुई. पर जिस पैमाने पर भ्रष्टाचार हर संस्थाओं में तथा हर सरकारी विभागों में है उसपर ध्यान देते हुए इस क़दम की घोषणा पूरी तैयारी के साथ कर सकना संभव नहीं था. विमुद्रीकरण एक सराहनीय क़दम है देश की सुरक्षा के लिए साथ ही साथ भ्रष्टाचार से निर्बल हुई संस्थाओं को जनहित में सबल बनाने के लिए.
अभी जनता ने यह भी देखा कि विपक्ष अपनी ज़िम्मेदारी केवल सत्ता में रहे दलों के किसी भी क़दम को अनावश्यक और जनहित विरोधी कह कर हंगामा करना ही अपना कर्त्तव्य समझते है. अगर ध्यान दें तो यह प्रतीत होता है कि हम प्रजातंत्र समाज प्रणाली के लिए परिपक्व नहीं हैं.
अगर कुछ कारण विरोध प्रदर्शन के लिए नहीं नज़र आया तो विरोध करने के लिए धर्म का सहारा राजनेता लेते पाए जाते हैं. जनहित में हमें धर्म को राजनीति से कोसों दूर रखना है. जातिवाद का घुन हमारे समाज में सबलता से लगा है. दलितों की भलाई एवं कल्याण की बातें करने वाले अपनी जेब भरने में लगे हैं. उत्तर प्रदेश में समाजवादी दल, बहुजन समाज दल, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल जातिवाद, वंशवाद और भ्रष्टाचार के आधार का संकेतक है. प्रश्न यह उठता है कि हम कब तक इन दलों को सहारा और अपना मत देते रहेंगे. पहले केवल काँग्रेस पार्टी ही वंशवाद के बल पर चल रही थी. इस बात का नक़ल उत्तर प्रदेश और बिहार में किया गया . चुनावों में इनकी सफलता इसको प्रमाणित करती है कि हम अभी भी स्वतंत्र नहीं हैं और हमारी मानसिकता संकुचित ही है. इसका बहुत बड़ा कारण समाज में फैले भ्रष्टाचार को समझना चाहिए और जब तक हम सोच में कलुषित और संकुचित रहेंगे तब तक हम प्रजातंत्र के योग्य अपने को नहीं समझ सकते. बीजेपी, काँग्रेस , समाजवादी या बहुजन समाजवादी या राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियाँ हमारे बीच भ्रष्टाचार और मानसिक संकुचितता का लाभ उठाकर सत्ता में आती रहेंगी और देश को फिर से नीचे गिराने में सफल रहेंगी. हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम इसे समझें और जातिवाद, वंशवाद की प्रथा को अभी छोड़ें. इसी में हम सबका कल्याण है.
मैं प्रजातंत्र से सम्बंधित ब्लॉग पहले भी आपके हिंदी दैनिक जागरण में लिख चूका हूँ. प्रजातंत्रात्मक व्यवस्था कि स्थापना और इसके पोषक संविधान का पारित होना ही काफी नहीं है. हमें प्रजातंत्र को सबल बनाना होगा. इस काम में मैं अंग्रेजी अखबारों से आशा नहीं रखता. देखना यह है कि हिंदी दैनिक के ब्लॉग को कितने लोग पढ़ते हैं और सक्रियता से जातिवाद, वंशवाद, भ्रष्टाचार से भरे आचरण से हमारे कलुषित समाज को मुक्ति दिलाने में ठोस क़दम उठाते हैं. अपेक्षा की जाति है कि पाठक अपना सुझाव दें ताकि इस प्रयास को आगे बढाया जा सके. अंत में नव वर्ष की सभी पाठकों को बधाईयाँ.
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